हमारे समाज का कोढ़ : दहेज-प्रथा ( Dowry System Essay in Hindi ) | दहेज-प्रथा पर हिंदी निबन्ध |
प्रस्तावना —
दहेज-प्रथा के विरोध में लिखनेवाले अमर साहित्यकार प्रेमचन्द हैं, परन्तु हमने उनकी, उनके विश्वास की और उनके साहित्य की हत्या कर डाली है। समाज के जिन कर्णधारों से प्रेमचन्द यह आशा करते थे कि उनकी दहेजविरोधी यथार्थ दृष्टि के सम्मान में वे दहेज का उन्मूलन कर डालेंगे, वे ही प्रथम पंक्ति के सामाजिकगण, यूं कहिए कि आज के गणमान्य नागरिक ही दहेज लेन-देन के सफल व्यापारी बने हुए हैं।
आज हम प्रेमचन्द की आवाज का गला घोंटने में कितने सफल हैं, कितने कृतघ्न हैं कि हम उनके प्रति यदि आत्मविश्लेषण करें तो शायद मुँह छुपाने को भी जगह न मिले। दहेज का दानव आज भारतीय समाज में विनाशलीला मचाए हुए है। दहेज के कारण कितनी ही युवतियाँ काल के क्रूर गाल में समा जाती हैं; प्रतिदिन समाचार-पत्रों में इन दुर्घटनाओं (हत्याओं और आत्महत्याओं) के समाचार प्रकाशित होते रहते हैं। नारी उत्पीड़न के किस्सों को सुनकर कठोर से कठोर व्यक्ति का हृदय भी पीड़ा और ग्लानि से भर जाता है।
समाज का यह कोढ़ निरन्तर विकृत रूप धारण करता जा रहा है। समय रहते इस भयानक रोग का निदान और उपचार आवश्यक है; अन्यथा समाज की नैतिक मान्यताएँ नष्ट हो जाएँगी और मानव मूल्य समाप्त हो जाएंगे।

दहेज का अर्थ –
सामान्यतः दहेज का तात्पर्य उन सम्पत्तियों तथा वस्तुओं से समझा जाता है, जिन्हें विवाह के समय वधू पक्ष की ओर से वर पक्ष को दिया जाता है। मूलतः इसमें स्वेच्छा का भाव निहित था, किन्तु आज दहेज का अर्थ इससे अलग हो गया है। अब इसका मतलब उस सम्पत्ति अथवा मूल्यवान् वस्तुओं से है, जिन्हें विवाह की एक शर्त के रूप में कन्या पक्ष द्वारा वर पक्ष को विवाह से पूर्व अथवा बाद में में देना पड़ता है। वास्तव में इसे दहेज की अपेक्षा वर मूल्य कहना अधिक उपयुक्त होगा।
दहेज-प्रथा के प्रसार के कारण-
दहेज-प्रथा के विस्तार के अनेक कारण हैं। इनमें से प्रमुख कारण है-
(क) धन के प्रति अधिक आकर्षण –
आज का युग भौतिकवादी युग है। समाज में धन का महत्त्व बढ़ता जा रहा है। धन सामाजिक एवं पारिवारिक प्रतिष्ठा का आधार बन गया है। मनुष्य येन-केन-प्रकारेण धन के संग्रह में लगा हुआ है। वर पक्ष ऐसे परिवार में ही सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है, जो धन-सम्पन्न हो तथा जिससे अधिकाधिक धन प्राप्त हो सके।
(ख) जीवन साथी चुनने का सीमित क्षेत्र-
हमारा समाज अनेक जातियों तथा उपजातियों में विभाजित है। सामान्यतः प्रत्येक मां-बाप अपनी लड़की का विवाह अपनी ही जाति या अपने से उच्चजाति के लड़के के साथ करना चाहता है। इन परिस्थितियों में उपयुक्त वर के मिलने में कठिनाई होती है: फलतः वर पक्ष की ओर से दहेज की मांग आरम्भ हो जाती है।
(ग) बाल-विवाह –
बाल-विवाह के कारण लड़के अथवा लड़की को अपना जीवन-साथी चुनने का अवसर नहीं मिलता। विवाह सम्बन्ध का पूर्ण अधिकार माता-पिता के हाथ में रहता है। ऐसी स्थिति में लड़के के माता-पिता अपने पुत्र के लिए अधिक दहेज की माँग करते हैं।
(घ) शिक्षा और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा–
वर्तमान युग में शिक्षा बहुत महंगी है। इसके लिए पिता को कभी-कभी अपने पुत्र की शिक्षा पर अपनी सामर्थ्य से अधिक धन व्यय करना पड़ता है। इस धन की पूर्ति वह पुत्र के विवाह के अवसर पर दहेज प्राप्त करके करना चाहता है। शिक्षित लड़के ऊँची नौकरियाँ प्राप्त करके समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त करते हैं, परन्तु इनकी संख्या कम है और प्रत्येक बेटीवाला अपनी बेटी का विवाह उच्च नौकरी प्राप्त प्रतिष्ठ युवक के साथ ही करना चाहता है; अत: इस दृष्टि से भी वर के लिए दहेज की माँग निरन्तर बढ़ती जा रही है।
(ङ) विवाह की अनिवार्यता –
हिन्दू धर्म में एक विशेष अवस्था में कन्या का विवाह करना पुनीत कर्त्तव्य माना गया है तथा कन्या का विवाह न करना ‘महापातक’ कहा गया है। प्रत्येक समाज में कुछ लड़कियाँ कुरूप अथवा विकलांग होती हैं; जिनके लिए योग्य जीवन-साथी मिलना प्रायः कठिन होता है। ऐसी स्थिति में कन्या के माता-पिता वर पक्ष को दहेज का लालच देकर अपने इस पुनीत कर्त्तव्य’ का पालन करते हैं।
दहेज प्रथा के दुष्परिणाम –
दहेज प्रथा ने हमारे सम्पूर्ण समाज को पथभ्रष्ट तथा स्वार्थी बना दिया है। समाज में यह रोग इतने व्यापक रूप से फैल गया है कि कन्या के माता-पिता के के रूप में जो लोग दहेज की बुराई करते हैं, वे हो अपने पुत्र के विवाह के अवसर पर मुँह माँगा दहेज प्राप्त करने के लिए लालायित रहते हैं। इससे समाज में अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हो गई हैं तथा अनेक नवीन समस्याएँ विकराल रूप धारण करती जा रही हैं; यथा-
(क) बेमेल विवाह –
दहेज-प्रथा के कारण आर्थिक रूप से दुर्बल माता-पिता अपनी पुत्री के लिए उपयुक्त हर प्राप्त नहीं कर पाते और विवश होकर उन्हें अपनी पुत्री का विवाह ऐसे अयोग्य लड़के से करना पड़ता है, जिसके माता-पिता कम दहेज पर उसका विवाह करने को तैयार हों। दहेज न देने के कारण कई बार माता-पिता अपनी कम अवस्था की लड़कियों का विवाह अधिक अवस्था के पुरुषों से करने के लिए भी विवश हो जाते हैं।
(ख) ऋणग्रस्तता –
दहेज प्रथा के कारण वर पक्ष की माँग को पूरा करने के लिए कई बार कन्या के पिता को ऋण भी लेना पड़ता है, परिणामस्वरूप अनेक परिवार आजन्म ऋण की चक्की में पिसते रहते हैं।
(ग) कन्याओं का दुःखद वैवाहिक जीवन –
वर पक्ष की माँग के अनुसार दहेज न देने अथवा दहेज में किसी प्रकार की कमी रह जाने के कारण ‘नव-वधू’ को ससुराल में अपमानित होना पड़ता है।
(घ) आत्महत्या –
दहेज के अभाव में उपयुक्त वर न मिलने के कारण अपने माता-पिता को चिन्तामुक्त करने हेतु अनेक लड़कियाँ आत्महत्या भी कर लेती हैं। कभी-कभी ससुराल के लोगों के ताने सुनने एवं अपमानित होने पर विवाहित स्त्रियाँ भी अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु आत्महत्या कर लेती हैं।
(ङ) अविवाहिताओं की संख्या में वृद्धि –
दहेज प्रथा के कारण कई बार निर्धन परिवारों की लड़कियों को उपयुक्त वर नहीं मिल पाते। आर्थिक दृष्टि से दुर्बल परिवारों की जागरूक युवतियाँ गुणहीन तथा निम्नस्तरीय युवकों से विवाह करने की अपेक्षा अविवाहित रहना उचित समझती हैं, जिससे अनैतिक सम्बन्धों और यौन कुण्ठाओं जैसी अनेक सामाजिक विकृतियों को बढ़ावा मिलता है।

दहेज समस्या का समाधान-
दहेज प्रथा समाज के लिए निश्चित ही एक अभिशाप है। कानून एवं समाज-सुधारकों ने दहेज से मुक्ति के अनेक उपाय सुझाए हैं। यहाँ पर उनके सम्बन्ध में संक्षेप में विचार किया जा रहा है—
(क) कानून द्वारा प्रतिबन्ध –
अनेक व्यक्तियों का विचार था कि दहेज के लेन-देन पर कानून द्वारा प्रतिबन्ध लगा दिया जाना चाहिए। फलत: 9 मई, 1961 ई० को भारतीय संसद में ‘दहेज निरोधक अधिनियम’ स्वीकार कर लिया गया। सन् 1986 ई० में इसमें संशोधन करके इसे और अधिक व्यापक तथा सशक्त बनाया गया। अब दहेज लेना और देना दोनों अपराध है। इसमें दहेज लेने और देनेवाले को 5 वर्ष की कैद और 1500 रुपये तक के जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
इस अधिनियम की धारा 44 के अन्तर्गत दहेज माँगनेवाले को 6 माह से 2 वर्ष तक की कैद तथा 15000 रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है। दहेज उत्पीड़न एक गैर-जमानती अपराध होगा। यदि विवाहिता की मृत्यु किसी भी कारण से विवाह के सात वर्षों के भीतर हो जाती है तो दहेज में दिया गया सारा सामान विवाहिता के माता-पिता या उसके उत्तराधिकारी को मिल जाएगा।
यदि विवाह के सात वर्ष के भीतर विवाहिता की मृत्यु अप्राकृतिक कारण (आत्महत्या भी इसमें सम्मिलित हैं) से होती है तो ऐसी मृत्यु को हत्या की श्रेणी में रखकर आरोपियों के विरुद्ध हत्या का मुकदमा चलाया जाएगा, जिसमें उन्हें सात साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।
(ख) अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन –
अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देने से वर का चुनाव करने के क्षेत्र में विस्तार होगा तथा युवतियों के लिए योग्य वर खोजने में सुविधा होगी। इससे दहेज की माँग में भी कमी आएगी।
(ग) युवकों को स्वावलम्बी बनाया जाए-
स्वावलम्बी होने पर युवक अपनी इच्छा से लड़की का चयन कर सकेंगे। दहेज की माँग अधिकतर युवकों की ओर से न होकर उनके माता-पिता की ओर से होती है। स्वावलम्बी युवकों पर माता-पिता का दबाव कम होने पर दहेज के लेन-देन में स्वतः कमी आएगी।
(घ) लड़कियों की शिक्षा-
जब युवतियाँ भी शिक्षित होकर स्वावलम्बी बनेगी तो वे अपना जीवन-निर्वाह करने में समर्थ हो सकेंगी। दहेज की अपेक्षा आजीवन उनके द्वारा कमाया गया धन कहीं अधिक होगा। इस प्रकार की युवतियों की दृष्टि में विवाह एक विवशता के रूप में भी नहीं होगा, जिसका वर पक्ष प्रायः अनुचित लाभ उठाता है।
(ङ) जीवन-साथी चुनने का अधिकार –
प्रबुद्ध युवक-युवतियों को अपना जीवन साथी चुनने के लिए अधिक छूट मिलनी चाहिए। शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ युवक-युवतियों में इस प्रकार का वैचारिक परिवर्तन सम्भव है। इस परिवर्तन के फलस्वरूप विवाह से पूर्व एक-दूसरे के विचारों से अवगत होने का पूर्ण अवसर प्राप्त हो सकेगा।
उपसंहार —
दहेज प्रथा एक सामाजिक बुराई है; अतः इसके विरुद्ध स्वस्थ जनमत का निर्माण करना चाहिए। । जब तक समाज में जागृति नहीं होगी, दहेजरूपी दैत्य से मुक्ति पाना कठिन है। राजनेताओं, समाज-सुधारकों तथा युवक-युवतियों आदि सभी के सहयोग से ही दहेज प्रथा का अन्त हो सकता है।
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